Wednesday, January 15, 2014

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा


सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा। 
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का,
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा। 
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ,
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा। 
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा। 
गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा
यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा
'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा ।
---------------------- मुहम्मद इक़बाल 

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