चलो एक ख्वाब बुनते हैं
आज के कोलाहल से दूर,
कल के प्रश्न से भी मुक्त
एक नया-सा घर बनाते है
चलो एक ख्वाब बुनते हैं
तुम्हारी यादों के सैलाब में,
गहराई तक गोते लगाते है
चमकते सीप के मोती
चुन चुन कर सजाते हैं ,
चलो एक ख्वाब बुनते हैं
समंदर की रेत पर, दूर तक
बेवजह, टहल कर आते है,
लहरों से भी न मिट सके
यूँ कदमो के निशां बनाते है
चलो एक ख्वाब बुनते है
हमतुम, बाँहों में बाहें डाले
सपनो में कहीं खो जाते है
किसी चांदनी रात को
खुले आसमान के नीचे
निश्चिंत हो, सो जाते हैं
चलो एक ख्वाब बुनते हैं
न तुम्हे मुझसे शिकायत हो
न मुझे तुमसे कोई गिला
एक दूसरे की रूह को बस,
अनवरत महसूस करते हैं ,
चलो एक ख्वाब बुनते हैं
---------------------- राजेश मीणा 'बुजेटा'
बहुत खूब लिखते है सर आप 👏👏
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