Monday, May 16, 2016

शकील अहमद ' बदायूंनी '

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मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...