If you walk by your legs, u will reach nowhere, If you walk by your brain, u will reach your destination, But if you walk by ur heart, u will reach your destiny.
Labels
My Poetry
(34)
Other Poetry
(29)
My Articles
(9)
CSE Preparation
(6)
Inspiring Quotes
(2)
My Stories
(2)
Monday, May 16, 2016
Saturday, March 5, 2016
मातृत्व का एहसास
आज जब वो देखती है,
अपनी नन्ही परी को,
एकटक, अपलक,
ममता भरी नजरों से।
दो बूँद स्नेह की,
प्यार का मोती बन,
लुढ़क जाती हैं,
उसके गालो पर।
उस रोज,
ठीक एक साल पहले,
दर्द की दीवार को लांघ,
कराह की वेदना को भस्म कर,
उसने स्वयं अपने अंग से,
एक नई,
संस्कृति को जन्म दिया था।
और आज भी,
वो खूबसूरत लम्हा याद कर,
महसूस होता है उसे,
कि वक्त, थम सा गया है । शरारत भरी,
परी की मुस्कुराहट,
छोटी छोटी,
और नाजुक सी उंगलियो से,
उसके गाल को पकड़ने की कोशिश,
और कोमल पैरो से,
डगमगाते हुए चलते देख,
खुशी से चहक जाती है वो।
और सैलाब मातृत्व का,
भर देता है, भीतर तक,
उसका रोम रोम।
परी को देखती है,
सोते हुए सुकून से जब,
तो उसे एहसास होता है,
कि आज वह ,
पूर्ण है, शान्त है ,
अतीत और भविष्य से परे,
बस वर्तमान मे।।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '
टकराव
दो खूबसूरत,
पर समय के तराजू मे उलझे,
विचारों का टकराव,
एक अतीत का प्रतिबिंब,
तो दूजा,
भविष्य की कल्पना।
निश्चित है,
वर्तमान रूपी,
खूबसूरत लम्हे का,
दो पाटों के बीच पिसना।।
ना ये उसके,
अरमान, ख्वाब,
या आकांक्षाओं को समझता।
और ना ही वो इसके,
तर्क, कारण,
या तड़प को स्वीकारता।।
एक बेहद लम्बे,
पर अर्धनिर्मित पुल के,
दो छोर हैं ये विचार।
जो पूरक हैं,
एक - दूजे के।
पर ग्रसित हो,
द्वेष से,
समयाभाव के कारण,
अधीर, बेसब्र हो,
कोसते है,
एक दूसरे को।
वर्तमान में,
वो बीच में जो,
बन रहा है खम्भ,
अभी बेबस और लाचार है,
पर एहसास है उसे,
कि कल,
उसी के कंधों पर टिकेगा,
भार उन दो छोर का।
और वो बनेगा,
गवाह, साक्षी,
उन दो विपरीत,
विचारों के मिलन का।
अतीत व भविष्य के बीच की,
खाई को पाटकर,
एक सुनहरे वर्तमान का।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '
पर समय के तराजू मे उलझे,
विचारों का टकराव,
एक अतीत का प्रतिबिंब,
तो दूजा,
भविष्य की कल्पना।
निश्चित है,
वर्तमान रूपी,
खूबसूरत लम्हे का,
दो पाटों के बीच पिसना।।
ना ये उसके,
अरमान, ख्वाब,
या आकांक्षाओं को समझता।
और ना ही वो इसके,
तर्क, कारण,
या तड़प को स्वीकारता।।
एक बेहद लम्बे,
पर अर्धनिर्मित पुल के,
दो छोर हैं ये विचार।
जो पूरक हैं,
एक - दूजे के।
पर ग्रसित हो,
द्वेष से,
समयाभाव के कारण,
अधीर, बेसब्र हो,
कोसते है,
एक दूसरे को।
वर्तमान में,
वो बीच में जो,
बन रहा है खम्भ,
अभी बेबस और लाचार है,
पर एहसास है उसे,
कि कल,
उसी के कंधों पर टिकेगा,
भार उन दो छोर का।
और वो बनेगा,
गवाह, साक्षी,
उन दो विपरीत,
विचारों के मिलन का।
अतीत व भविष्य के बीच की,
खाई को पाटकर,
एक सुनहरे वर्तमान का।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '
तेरा साथ
एक सुकून सा है,
बेहद मीठा सा,
और तृप्ति का एहसास,
कोमल सा,
ये साथ तेरा।
निश्चिंत हूं मै,
अतीत के अंधेरों से,
और
भविष्य में आने वाली,
विपत से।
जो आज अब है,
संग मेरे,
साथ तेरा,
हर डर, शिकन को,
दूर रखता, मीलों।
ये एहसास,
देता है मुझे,
एक शांत मन,
स्थिरता।
और अब,
निश्चिंत हूं मै,
गमों से।
क्यूंकि,
तेरे प्यार का कवच,
और मुस्कुराहट का,
काला टीका,
घेरे है मुझे।
परत दर परत।
----- राजेश मीणा ' बुजेटा '
बेहद मीठा सा,
और तृप्ति का एहसास,
कोमल सा,
ये साथ तेरा।
निश्चिंत हूं मै,
अतीत के अंधेरों से,
भविष्य में आने वाली,
विपत से।
जो आज अब है,
संग मेरे,
साथ तेरा,
हर डर, शिकन को,
दूर रखता, मीलों।
ये एहसास,
देता है मुझे,
एक शांत मन,
स्थिरता।
और अब,
निश्चिंत हूं मै,
गमों से।
क्यूंकि,
तेरे प्यार का कवच,
और मुस्कुराहट का,
काला टीका,
घेरे है मुझे।
परत दर परत।
----- राजेश मीणा ' बुजेटा '
Subscribe to:
Comments (Atom)
मेरी मंज़िल
न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा, गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...


