दो खूबसूरत,
पर समय के तराजू मे उलझे,
विचारों का टकराव,
एक अतीत का प्रतिबिंब,
तो दूजा,
भविष्य की कल्पना।
निश्चित है,
वर्तमान रूपी,
खूबसूरत लम्हे का,
दो पाटों के बीच पिसना।।
ना ये उसके,
अरमान, ख्वाब,
या आकांक्षाओं को समझता।
और ना ही वो इसके,
तर्क, कारण,
या तड़प को स्वीकारता।।
एक बेहद लम्बे,
पर अर्धनिर्मित पुल के,
दो छोर हैं ये विचार।
जो पूरक हैं,
एक - दूजे के।
पर ग्रसित हो,
द्वेष से,
समयाभाव के कारण,
अधीर, बेसब्र हो,
कोसते है,
एक दूसरे को।
वर्तमान में,
वो बीच में जो,
बन रहा है खम्भ,
अभी बेबस और लाचार है,
पर एहसास है उसे,
कि कल,
उसी के कंधों पर टिकेगा,
भार उन दो छोर का।
और वो बनेगा,
गवाह, साक्षी,
उन दो विपरीत,
विचारों के मिलन का।
अतीत व भविष्य के बीच की,
खाई को पाटकर,
एक सुनहरे वर्तमान का।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '
पर समय के तराजू मे उलझे,
विचारों का टकराव,
एक अतीत का प्रतिबिंब,
तो दूजा,
भविष्य की कल्पना।
निश्चित है,
वर्तमान रूपी,
खूबसूरत लम्हे का,
दो पाटों के बीच पिसना।।
ना ये उसके,
अरमान, ख्वाब,
या आकांक्षाओं को समझता।
और ना ही वो इसके,
तर्क, कारण,
या तड़प को स्वीकारता।।
एक बेहद लम्बे,
पर अर्धनिर्मित पुल के,
दो छोर हैं ये विचार।
जो पूरक हैं,
एक - दूजे के।
पर ग्रसित हो,
द्वेष से,
समयाभाव के कारण,
अधीर, बेसब्र हो,
कोसते है,
एक दूसरे को।
वर्तमान में,
वो बीच में जो,
बन रहा है खम्भ,
अभी बेबस और लाचार है,
पर एहसास है उसे,
कि कल,
उसी के कंधों पर टिकेगा,
भार उन दो छोर का।
और वो बनेगा,
गवाह, साक्षी,
उन दो विपरीत,
विचारों के मिलन का।
अतीत व भविष्य के बीच की,
खाई को पाटकर,
एक सुनहरे वर्तमान का।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '
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