उद्दत बादलों को चीर,
वायु के वेग को कर क्षीण,
पद्म की लालिमा को चूम,
सुप्त मन वेग से भागा।
जगी है आज फिर आशा।।
नदी की लहर के संग तैर,
बरफ़ की वादियों में झूम,
समंदर की सतह पर लोट,
कहीं मृग दूर तक भागा।
जगी है आज फिर आशा।।
सरकते पल्लू में सर ढांप,
हसीं गजरे की खुशबू औ'
खनखते कंगनों की गूँज,
कहीं फ़िर याद वो आया,
जगी है आज फिर आशा।।
नशीले उन दृगों में झाँक,
रसीले होंठ का कर पान,
मादक उस अदा में डूब,
चंचल मन मचल बैठा।
जगी है आज फिर आशा।।
---------------- राजेश मीणा 'बुजेटा'
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