Monday, January 30, 2017

मेरी परछाई

मेरी परछाई और मैं,
एक ही तो हैं।
पूरक एक दूसरे के।
वो समाई है कहीं,
मेरे ही भीतर।
पर फिर भी,
कभी लडती है,
कभी झगडती है,
रूठने-मनाने की रस्म निभाती है,
मेरी परछाई ।


दुपहर की तपती धूप में,
कभी पास आती,
तो कभी दूर जाती है,
इसी तरह दिन भर, 
लुका- छिपी का खेल खेलती।
कभी स्थिर, शांत, कभी चंचल,
तो कभी अदृश्य ।
अनेकों रूप धरती है,
मेरी परछाई ।
 
परंतु रात की खामोशी में,
सन्नाटे की परत के बीच,
ओस की बूंदो से हो तर, 
अंधेरे में डरी सहमी सी,
लिपट जाती है मुझसे।
खूब कस के।
और रात भर,  
सीने से चिपककर, 
चैन से सोती है,
मेरे साथ।
मेरी परछाई ।।

-----------  राजेश मीणा बुजेटा 

Tuesday, January 3, 2017

मेरे अंश



मेरे अंश,
कैसे हो तुम?
क्या तुम मेरे स्पर्श को,
महसूस करते हो?
क्या मेरे हृदय की,
बढ़ी हुई धड़कन को,
तुम भी सुन सकते हो?
क्या तुम्हे पता है,
खुशी के मारे,
रोम रोम सिहर गया था मेरा,
तुम्हारे आने की खबर पाकर।
कांपते हाथों से, 
ऑखे मूंद,
तुम्हे गले लगाया था।
पहली बार।

                                                          मेरे भीतर तुम्हे,
                                                                घुटन सी लगती होगी ना?
तुम्हारी चंचलता के आगे,
यह दुनिया सिमट जाती होगी।
हाथ - पैर चलाते हो,
बेचैन हो, बाहर आने को?
या कुछ कहना चाहते हो?
पर निश्चिंत रहना, सुकून से, 
महफूज हो तुम
मेरी रूह के आगोश मे,
मेरे गर्भ में।

चैन से सोओ, खेलो, कूदो।
और मुझे भी तुम्हे,
महसूस करने दो।
या मन करे तो 
बात कर लिया करो मुझसे,
  हाॅ, मै सुन सकती हूं तुम्हे।
   शब्द - शब्द, हर पल।

बेसब्र है ऑखे,
तुम्हे देखने को। 
और आतुर है मन,
तुम्हारे नाजुक और कोमल,
गालो के चुंबन को।
इस खूबसूरत दुनिया में,
तुम्हारी पहली मुस्कुराहट का,
पहली चहक का,
पहले कदम का,
पहले शब्द का,
मेरे अंश, स्वागत है।।

----- राजेश मीणा बुजेटा

शायरी - २

जब  टूटने  लगे  हौसला,  तो  बस  ये  याद  रखना,
बिना  मेहनत  के  हासिल,  तख्तो  ताज  नहीं  होते,
ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों  में  मंज़िले  अपनी,
जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते…..!!!!!!!!!!!

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं,
अभी तो नापी है सिर्फ मुटठी भर ज़मीन तुमने ,
अभी तो सारा आसमान बाकी है !!



तालीम नही दी जाती,
परिंदो को उड़ान की |
वो तो खुद ही नाप लेते हैं,
उचाईयां  आसमान  की || 

सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वासते राहें कहाँ बदलती हैं ?
तुम अपने आप को, ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रासता नहीं देता,
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
यही है ज़िंदगी, कुछ ख़ाक चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

ग़लतफ़हमियों के सिलसिले इस कदर फैले हैं…
कि हर ईंट सोचती है, दीवार हमहीं से है…

जब चलना नहीं आता था, तो गिरने नहीं देते थे लोग….
जब से संभाला है खुद को, कदम कदम पर गिराते  है लोग….

संघषोॅ मे यदि कटता है, तो कट जाए सारा जीवन,
कदम कदम पर समझौता  करना,  मेरा उसूल  नही..!

हम आज भी अपने हुनर मे दम रखते है,
होश उड़ जाते है लोगो के, जब हम महफील में कदम रखते है।।

दोपहर  तक बिक गया,
बाज़ार का हर एक झूट |
और मैं एक सच ले कर,
शाम तक बैठा रहा || 

खोकर  पाने का मज़ा ही  कुछ और है,
रोकर मुस्कुराने का मज़ा ही  कुछ और है |
हार तो ज़िंदगी का हिस्सा है मेरे दोस्त,
पर उस हार के बाद जीतने का मज़ा ही  कुछ और है || 


मंजिले तो मिलती हैं,
देर से  ही सही |
पर गुमराह तो वो  हैं,
जो घर से निकले ही नही ||


एक हद के बाद, दर्द भी दवा बन जाता है,
एक हद के बाद, झूठ भी सच बन जाता है,
यही है असलियत जिंदगी की,
एक हद के बाद, दुश्मन भी दोस्त बन जाता है !!

मौत को तो मैंने कभी देखा नहीं,
पर वो यकीनन बहुत खूबसूरत होगी,
कमबख्त जो भी उससे मिलता है,
जिंदगी जीना ही छोड़ देता है !!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है,
थोड़ा रुलाती है, थोड़ा हसाती है,
खुद से ज्यादा किसी पे भरोसा मत करना,
क्योंकि अँधेरे में तो परछाईं भी साथ छोड़ जाती है !!




जीत के खातिर बस जुनून चाहिए,
जिसमे उबाल हो, ऐसा खून चाहिए |
यह आसमाँ  भी आएगा ज़मीन पर,
बस इरादों मे जीत की गूँज/ हुंकार  चाहिए.

अगर ख़ुदा नहीं हैं, तो उसका ज़िक्र क्यों ?
और अगर ख़ुदा है, तो फिर फिक्र क्यों ?

हथियार तो सिर्फ शौक के लिए रखते है  ,
खौफ के लिए तो बस नाम ही काफी है  ।

जिंदगी में इतनी शिद्दत से निभाओ
अपना किरदार,
कि परदा गिरने के बाद भी,
तालीयाँ बजती रहे….।।

शेर खुद अपनी ताकत से राजा कहलाता है;
जंगल मे चुनाव नही होते ।।

में बंदूक और गिटार,
दोनों चलाना जानता हूं ।
तय तुम्हे करना है कि
तुम  कौन सी धुन पर नाचोगे..।।

इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर ऐ बेखबर,
शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे, तो मेरी हार के हैं..!!

वो मायूसी के लम्हों में, ज़रा भी हौसला देता |
तो हम कागज़ की कश्ती पर, समुन्दर में उतर जाते !!

तू काम करता गया,
मैं इश्क़ करता गया | 
तेरा नाम होता गया,
मैं बदनाम होता गया || 

आज उतनी भी नहीं मयखाने में,
जितनी हम छोढ़ दिया करते थे पैमाने मे || 

दिल के छालों को कोई शायरी कहे,
तो दर्द नही होता |
तकलीफ़ तो तब होती है,
जब लोग वाह -वाह  करते हैं || 

हर फूल को रात की रानी नही कहते,
हर किसी से दिल की कहानी नही कहते,
मेरी आँखों की नमी से समझ लेना,
हर बात को हम जुबानी नही कहते.


जी भर गया है तो बता दो,
हमें इनकार पसंद है, इंतजार नहीं…!

मुझको पढ़ पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं,
मै वो किताब हूँ जिसमे शब्दों की जगह जज्बात लिखे है….!!

शायरी - १

फिर इश्क़ का जुनूं चढ़ रहा है सिर पे ,
मयख़ाने से कह दो दरवाज़ा खुला रखे !

यूँ तो सिखाने को ज़िन्दगी
बहुत कुछ सिखाती है...!!
मगर---
झूठी हंसी हँसने का हुनर तो
बस मोहब्बत ही सिखाती है...!!

ऐ बारिश ज़रा थम के बरस,
जब मेरा यार आ जाए तो झूम के बरस,
पहले ना बरस को वो आ ना सके,
फिर इतना बरस की वो जा ना सके ||

सुनो साहब ....!!
ये जो इश्क है ना ...?
जान ले लेता है
मगर फिर भी मौत नहीं आती .............!!

वो नकाब लगा कर खुद को
इश्क से महफूज़ समझते रहे;
नादां इतना भी नहीं समझते कि इश्क
चेहरे से नहीं आँखों से शुरू होता है!

वो मेरे दिल पर सिर रखकर सोई थी बेखबर;
हमने धड़कन ही रोक ली,
कि कहीं उसकी नींद ना टूट जाए।

इस शहर के बादल, तेरी जुल्फ़ों की तरह है |
ये आग लगाते है, बुझाने नहीं आते। - २
क्या सोचकर आए हो,  मुहब्बत की गली में,
जब नाज़ हसीनों के, उठाने नहीं आते।

गुज़रे है आज इश्‍क के उस मुकाम से,
नफरत सी हो गयी है, मोहब्बत के नाम से ।

दुःख देकर सवाल करते हो;
तुम भी जानम! कमाल करते हो;
देख कर पूछ लिया हाल मेरा;
चलो कुछ तो ख्याल करते हो;
शहर-ए दिल में ये उदासियाँ कैसी;
ये भी मुझसे सवाल करते हो;
मरना चाहें तो मर नहीं सकते;
तुम भी जीना मुहाल करते हो;
अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को;
हर सितम बे-मिसाल करते हो।
~ Mirza Ghalib

क्या खबर थी हमे,
के "मोहब्बत" हो जाए गी..
हमे  तो बस...
आपका  "मुस्कुराना" अछा लगा था..

हम भूल जाते हैं उस के सारे सितम,
जब उस की थोड़ी सी मुहब्बत याद आती है...!!


पल पल तरसे थे उस पल के लिए,
मगर यह पल आया भी तो कुछ पल के लिए ,
सोचा था उसे ज़िंदगी का एक हसीन पल बना लेंगे ,
पर वो पल रुका भी तो बस एक पल के लिए.

सो गए बच्चे गरीब के ये सुनकर …।
ख्वाब में फरिस्ते आते है रोटिया लेकर ……!!


आग सूरज में होती है ,
जलना धरती को पडता है |
मोहब्बत आंखे करती हैं ,
तडपना  दिल को पडता है || 




खुद ही दे जाओगे तो बेहतर है..!
वरना हम, दिल चुरा भी लेते हैं..!

बहुत गुस्ताख है तेरी यादे,
इन्हे तमीज सिखा दो |
कमबख्त दस्तक भी नही देती,
और दिल में उतर जाती है ||

बड़ी गुस्ताखियाँ करने लगा है,
मेरा दिल अब मुझसे |
ये कम्बखत जब से तेरा हुआ है,
मेरी सुनता ही नहीं।

मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...