आज जब वो देखती है,
अपनी नन्ही परी को,
एकटक, अपलक,
ममता भरी नजरों से।
दो बूँद स्नेह की,
प्यार का मोती बन,
लुढ़क जाती हैं,
उसके गालो पर।
उस रोज,
ठीक एक साल पहले,
दर्द की दीवार को लांघ,
कराह की वेदना को भस्म कर,
उसने स्वयं अपने अंग से,
एक नई,
संस्कृति को जन्म दिया था।
और आज भी,
वो खूबसूरत लम्हा याद कर,
महसूस होता है उसे,

शरारत भरी,
परी की मुस्कुराहट,
छोटी छोटी,
और नाजुक सी उंगलियो से,
उसके गाल को पकड़ने की कोशिश,
और कोमल पैरो से,
डगमगाते हुए चलते देख,
खुशी से चहक जाती है वो।
और सैलाब मातृत्व का,
भर देता है, भीतर तक,
उसका रोम रोम।
परी को देखती है,
सोते हुए सुकून से जब,
तो उसे एहसास होता है,
कि आज वह ,
पूर्ण है, शान्त है ,
अतीत और भविष्य से परे,
बस वर्तमान मे।।
--- राजेश मीणा ' बुजेटा '