हमनें उन्नत शिखरों को धूमिल होते देखा है,
ऊँचे हो न हो, पर शैल मज़बूत होने चाहिए।
आहत किया उसने मुझे, लफ़्ज के हर बाण से,
ज़रूरी नहीं कि, खून की कुछ बूँद गिरनी चहिये।
नुमाईश हुस्न की, होती यहाँ हर रोज़ है लेकिन,
धड़कन चुराले दिल की, एक सख्श ऐसा चाहिए।
दो अश्कों में बह गया, गम दिल का सारा।
आँसू छुपाने के लिए, कोई राज़ गहरा चाहिए।
बारिश की हर बूँद, शबनम बन नहीं सकती,
मोती बनने के लिए, एक सीप भी तो चाहिए।
ढल रही है रात काली, और मंजिल दूर है,
इस रात को काटने पर, एक हमसफ़र तो चाहिए।
----- राजेश मीणा ‘बुजेटा’
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