सूरज ढल जाए तो क्या?
अँधियारा हो जाए तो क्या?
लाख ठोकरें लगे तुझे पर,
अपने पसीने से,
एक दीप जला कर चल,
आ मेरे संग चल।
संग छोड़ गए तेरा तो क्या?
पड़ गया अलग-थलग तो क्या?
काँप रहा है आज हृदय पर,
झुलसती रेत मे रख कदम,
छोड़ एक नयी लकीर तू चल,
आ मेरे संग चल।
मुह फेर गयी मंजिल तो क्या?
किस्मत रूठ गयी तो क्या?
अभी हार का स्वाद चखा पर,
आँखों मे ले नया स्वप्न तू,
एक नयी दिशा मे चल,
आ मेरे संग चल।
उठ नहीं रहे कदम तो क्या?
खिच नहीं रही देह तो क्या?
अभी चूर हो बैठ गया पर,
छोड़ लगाम हृदय-अश्वों की,
पंख लगा मन उड़ने दे चल,
आ मेरे संग चल।
आ मेरे संग चल।।
----- राजेश मीणा ‘बुजेटा’
really gud n inspirational sir..........
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