Friday, March 22, 2013

आँसू

आँखों में बसे
पलकों में छुपे,
आँसुओं को,
बांधने की, थामने की,
बहुत कोशिश की।
पर किसी की याद,
किसी की बात,
और वो एहसास, कुछ ख़ास,
कुरेदते रहे,
पर्दों की नाजुक दीवार।
यादों के उपवन से,
खुशियों के झुरमुट से,
चुराए हुए कुछ फूल,
और उनसे आती भीनी-भीनी खुशबू,
पिघला देती है,
बर्फ की चट्टान।
फूट पड़ता है स्रोत,
कुछ नया, कुछ पुराना सा,
आँसुओं का।
रात भर सर्द हवा से,
होती रही तकरार,
और सुबह तक,
हार कर,
छोड़ गया बस,
एक लीक,सफ़ेद सी,
गाल पर।।

------राजेश मीणा बुजेटा 

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