Wednesday, November 21, 2012

मुखौटे

कल वहा मेला लगा था,
बिक रहे थे, हर दुकां पर,
प्यार के ढेरों मुखौटे।
वेदना से भरे।
ढुलाते थे पंकजों से,
आंसुओं की धार,
करुणा भरी।
स्वतः ही,
खिच गया ध्यान,
सम्मोहित हुआ,
और बढ़ गया हाथ,
 उस मुखौटे की ओर।
पहनने को उठाया,
तो पाया,
कि दूजी तरफ से,
लग रहा था ,
खौफ़ का चेहरा।
घोर काला,
भयानक! डरावना!!
और प्यार का भक्षक।।


-----राजेश मीणा 'बुजेटा'

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