कल वहा मेला लगा था,
बिक रहे थे, हर दुकां पर,
प्यार के ढेरों मुखौटे।
वेदना से भरे।
ढुलाते थे पंकजों से,
आंसुओं की धार,
करुणा भरी।
स्वतः ही,
खिच गया ध्यान,
सम्मोहित हुआ,
और बढ़ गया हाथ,
उस मुखौटे की ओर।
पहनने को उठाया,
तो पाया,
कि दूजी तरफ से,
लग रहा था ,
खौफ़ का चेहरा।
घोर काला,
भयानक! डरावना!!
और प्यार का भक्षक।।
-----राजेश मीणा 'बुजेटा'
बिक रहे थे, हर दुकां पर,
प्यार के ढेरों मुखौटे।
वेदना से भरे।

आंसुओं की धार,
करुणा भरी।
स्वतः ही,
खिच गया ध्यान,
सम्मोहित हुआ,
और बढ़ गया हाथ,
उस मुखौटे की ओर।
पहनने को उठाया,
तो पाया,
कि दूजी तरफ से,
लग रहा था ,
खौफ़ का चेहरा।
घोर काला,
भयानक! डरावना!!
और प्यार का भक्षक।।
-----राजेश मीणा 'बुजेटा'
wow...this is ur best....so practical
ReplyDeletethanks brijendra....for ur appreciation :)
Delete