कौन कहता व्याप्त जो सर्वत्र है वो तू मसीहा,
विश्व में तेरे दिखा है दरिद्रता का ही अँधेरा ।

दूसरा घर-बार को अग्नि दिखा के जा रहा है,
वो गरीबी में धंसा बस पाँव पटके जा रहा है,
और वो तो, माँग भीख कर पेट पाले जा रहा है।
फिर बता तू सृष्टि पर है कर रहा उपकार कैसा ?
मांफ करना मैं नहीं हूँ मानता अस्तित्व तेरा।
कौन कहता व्याप्त जो सर्वत्र है वो तू मसीहा ?
विश्व में तेरे दिखा है वहशीपन का ही नज़ारा।
एक अबला पर अनगिनत कहर ढाए जा रहे हैं,
दूसरी की शान-इज्ज़त को उधेड़ा जा रहा है,
वो जन्म से संघर्षरत अस्तित्व पाने को स्वयं का,
और वो बनी, हिंसक पशु की भूख का बस इक निवाला।
फिर बता तू सृष्टि पर है कर रहा उपकार कैसा ?
मांफ करना मैं नहीं हूँ मानता अस्तित्व तेरा।

विश्व में तेरे बिछा है बेबसी का ही बिछोना ।
एक कोमल हाथ से चट्टान तोड़े जा रहा है,
दूसरा बचपन जलाता भट्टियों में तप रहा है,
वो काम कर दिन-रात माँ की दवा-दारू कर रहा है,
और वो माँ -बाप की बस कल्पना में जी रहा है।
फिर बता तू सृष्टि पर है कर रहा उपकार कैसा?
मांफ करना मै नहीं हूँ मानता अस्तित्व तेरा।
मांफ करना मै नहीं हूँ मानता अस्त्तिव तेरा।।
------ राजेश मीणा बुजेटा
wonderful poem...keep it up
ReplyDeleteThanks Abhigyan :)
Deleteu r amazing dear........just keep going like this only
ReplyDeletethnks u both :)
ReplyDeletesuperlike...
ReplyDeleteThanks bhai :)
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