Sunday, July 2, 2023

तुम्हारा जाना......

 चलते - चलते रुक सा जाना,

बैठे - बैठे ही सो जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे, 

महफ़िल में, तन्हा हो जाना ।


अंबर का काला हो जाना,

ज्वाला का ठंडा पड़ जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे,

इंद्र धनुष के, रंग पिघलना।



शरबत का फीका रह जाना,

अंगूरों का सूखा जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे,

मिश्री में, चीनी कम होना।


कलियों का यूँही मुरझाना,

बागों से तितली उड़ जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे,

फूलों से, ख़ुशबू छिन जाना।


बेमौसम पतझड़ हो जाना,

दरिया में सूखा पड़ जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे,

बारिश में, प्यासा रह जाना।


पलकों से आंसू बह जाना,

नब्ज ज़रा कुछ कम पड़ जाना,

तुम्हारा जाना, जैसे,

दिल की धड़कन, का थम जाना।



- - - - - - - - - - - - - - - - - - -  राजेश मीणा 'बुजेटा'



मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...