Tuesday, June 9, 2020

शायरी - ०३

दीखाई कम दिया करते हैं, बुनियाद के पत्थर,
ज़मीं में जो दब गए, ईमारत उन्ही पे कायम है || 

ज़मीन और मुकद्दर की, एक ही फितरत हैं ,
जो भी बोया है , वो निकलना तय है ||

सोचता हूँ दोस्तों पर मुकदमा कर दूँ,
इसी बहाने किसी तारीख पर मुलाकात तो होगी ||

ऐब भी बहुत है मुझमे, और खूबियां भी,
ढूंढने वाले, तू सोच, तुझे क्या चाहिए ?

jhuk kar jo apse milta hoga, 
yakinan usaka kad apse uncha hoga.

shayad  kuch khwahishon ka adhoora Rehna hi theek hai,
zindgi jeene ki aas ko banaye rakhne ke liye..

dikhayi nahi deta, par shamil Zaroor hota hai,
har khudkushi karne wale ka, koi katil zaroor hota hai

poocha na zindgi bhar, kisi ne dil ka haal,
ab Sehar bhar me jikra, meri khudkushi ka hai 

तुम कहीं वक्त की बातों में न आ जाना,
यह कभी मुझसे भी कहता था, मै  तेरा हूँ ||

अपने खिलाफ बातें, ख़ामोशी से सुन लो,
यकीं मनो, वक्त बेहतरीन जवाब देगा ||

मांझी तेरी कश्ती के तलबगार बहुत हैं,
हैं इस पार कुछ मगर उस पार बहुत हैं,
जिस शहर में खोली है तूने शीशे की दूकान,
उस शहर में पत्थर के खरीददार बहुत हैं ||

निज़ाम-ऐ-मैकदा बिगड़ा हुआ है इस कदर साकी,
उसी को जाम मिलता है, जिसे पीना नहीं आता ||

तुम्हे नसीब न हो, हमसा चाहने वाला,
हमे भी तुमसा फरेबी, अब न मिले कोई ||

राज़ की बात है, ज़रा धीरे से कहना ,
लबों की क्या बिसात, निगाहों से ही कहना ||

तेरी चाहत में इस कदर खुदगर्ज हूँ मैं,
की तू खुद को भी प्यार से देखे,
तो तकलीफ होती है ||

छुपे छुपे से रहते हैं, सरे आम नहीं होते,
कुछ रिश्ते सिर्फ एहसास हैं,
उनके नाम नहीं होते ||

कहते हैं एहसास अल्फ़ाज़ों के मोहताज़ नहीं होते,
फिर क्यों तेरे हर लफ्ज़ का, बेसब्री से इंतज़ार रहता है  ??



मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...