बाहें फैला कर बुलाती,
ये हसीं वादियाँ,
और दूर तक फैला समंदर,
जैसे कर रहा जय गान,
कल-कल करती,
संगीत सुनाती,
नदी की लहर के संग चल,
आ मेरे संग चल।
अनजान अनभिज्ञ राहों पर,
एक हमसफ़र को ढूँढता,
और खोज में मंजिल सुबह से,
सांझ तक तू ठेलता,
इस लम्बी डगर पर भी,
इक नया जोश ले चल,
आ मेरे संग चल।
----राजेश मीणा ‘बुजेटा’