जिज्ञासा,
मात्र शब्द नहीं,
सिन्धु है अनन्त गहराई का,
अनभिज्ञ अनन्त विस्तार का,
विवश करता अंतर्मन की देह को,
नयी उचाई छूने को,
नए आयाम विचरने को,
आकाश के उस पार,
फैले प्रस्तार को लोकने को.......
.............................शेष मेरी पुस्तक में.