Wednesday, April 1, 2009

दूरियों के दरमयान

अगर तू पास ना होती , तो मंजर कुछ और होता.

जिंदगी के इस फूल में रंग कोई और होता.
एक तू है , और तेरा खूबसूरत प्यार है,
की इतने दूर रहकर भी जिंदा है हम 
वर्ना इन सांसो की धडकनों का पैगाम कुछ और होता.


मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...