Wednesday, January 28, 2009

'मेरी रचनाये'........अनकही सी

I.

मोहब्बत के समंदर में, मै डूबा रहा सदियों तेरे,

मगर तुझे एहसास न था|

दूरिया घटती गयी हर गुजरते लम्हे के साथ,

मुझे था मालूम,
मगर तू जान कर भी रही अनजान,
इस बात का तुझे एहसास न था||

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II.

इन जुल्फ की छाया तले,सपने सजाने दे,

झील से इन चक्षुओं में डूब जाने दे|

हाँ मै तो पुजारी हूँ तेरा सदियों से,

बस इन लबो के जाम को मुह पर सजाने दे||
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'मेरी रचनाये'........अधूरी सी||

I.

सरहद- ऐ-कश्मीर पर बलिदान होते ही रहेगे,
इस गुलिस्ता-ऐ-चमन में फूल खिलते ही रहेगे,
रंजिश-ऐ-मुहब्बत में गर मर गए तो क्या?
बनकर  दिलो में याद तेरी हम महकते ही रहेगे||
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II.
हर अधूरी धडकनों का ख्वाब होता है,
पर गुजारिश है कभी महसूस तो करो|
सूख चुके हर फूल में भी रंग होता है,
पर गुजारिश है कभी महसूस तो करो|
इस जिस्म के हर अंश में बस तू बसी है,
पर गुजारिश है कभी महसूस तो करो||
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III.

डूब कर तेरी निगाहों में सनम बह जाऊँगा ,
प्यार के बस ढाई अक्षर गुनगुनाता जाऊँगा |
तुम करोगी याद दिल से जब कभी जान-ऐ-जिगर,
हर मोड़ पर यूही तुम्हे बस मुस्कराता मिल जाऊँगा ||
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मेरी मंज़िल

न जाने क्यूँ ? बचपन से ही दूर रही है, मुझसे मेरी मंज़िल । यत्न भी करता रहा,  गिरता- पड़ता- उठता- चलता रहा । मंज़िल मिलने के भ्रम में, क्या म...